क्यों लगता है ऐसे
की सदिया सिमट गई हों
एक लम्हे में जैसे
हाँ बात अलग है कि
वो लम्हा था मेरा पूर्ण विराम
एक अधूरे ख्वाब का नाम
जिंदगी रुक गई थी मेरी
जो आज शुरू हुई फिर से
फिर क्यों लगता है ऐसे
की सदियां सिमट गई हों
एक लम्हे में जैसे
आज कल या कल और आज
में कितना था फर्क नही है याद
एक लम्हे में बदली दुनियां
इसका था मुझको अवसाद
फिर क्यों लगता है ऐसे
कि सदियां सिमट गई हों
एक लम्हे में जैसे।
बुधवार, 8 फ़रवरी 2017
लम्हे
राह
जीवन नदी की तरह है । अपने रास्ते खुद तलाशती है और हम ताउम्र इस भ्रम में जीते हैं कि हम अपनी जिंदगी जी रहे हैं। हमारी सारी कोशिशें विधाता के बनाये नियमो और प्रकृति के विपरीत जा कर कुछ कर गुजरने की होती है। जबकि जीवन तो नदी है, अपने रास्ते स्वयं तय करती है।
मौन
क्यों लगता है कि
इस जहाँ में अपना कौन है
हर तरफ हलचल है फिर भी
दिल की दुनिया मौन है
एक आवाज़ जो दिल से आती
कहकर क्यों वो चुप हो जाती
सुनकर भी मैं समझ न पाती
क्या कुछ है वो कहना चाहती
अपनी हाथो की रेखाओं को
कभी नहीं पढ़ पाई मैं
कभी न जान पाई की
ये सपना नही सच्चाई है।
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