सोमवार, 20 जुलाई 2015

शून्य

वह शून्य भी तो सत्य है
 जो कुछ बयां नहीं करता
वह चांद भी तो सुंदर है
जिसे कोई छू नहीं सकता
जिंदगी भी वैसी ही
 एक अनोखी शून्य है
 आधी अधूरी कथा होकर
भी वो खुद में पूर्ण है
कुछ न कहके शून्य हमसे
सबकुछ कहता चुप ही रहके
अपनी पूर्णता का  प्रमाण
दे जाता वह मौन बनके
शून्य पृथ्वी शून्य आकाश
शून्य जीवन का तपास
शून्य ही सम्पूर्ण है
बाकि सब बस है आभास

ख्वाहिश

एक थी तमन्ना मेरे दिल को
 जिसे न पूरी मैं कर पाई
आज अचानक ही मुझको क्यों 
भूली बिसरी याद आई
जितना सच आज है मेरा
उतनी है इसमें सच्चाई
क्या नाम मैं दें दूं इसको
निर्णय नहीं ये कर पाई
मैं ही इसकी रचयीता 
मैं हूं इसकी अभिनेत्री
ये उतनी पावन पवित्र है 
जितनी गंगा व गंगोत्री
मन में उठती आंधी तूफान 
खुद ही थम गयी जैसे 
जाने ये झंझावात मेरे 
अंतरमन मे बसी कैसे

शनिवार, 11 जुलाई 2015

समय

बस समय का फेर है 
उसे आने दे ऐ बदनसीब 
ये तुझे बताएगा जरूर 
मेरी बादशाही क्या है
और तेरी नवाबी क्या है 
यूँ तो तुमने लगाये
कुंवे के हजार चक्कर
पर निकलते बहार तो
दीखता न असलियत का मंजर
हंसती हूँ तेरी वजूद पे मैं हरदम
की नसीब में जिसके जूठन लिखा हो
वो खाए कैसे राजभोग व शक्कर

पदमा  सहाय 

ठहरा-सा लगता है जीवन।

ठहरा-सा लगता है जीवन।
एक ही तरह से घटनाएँ
नयनों के आगे आतीं हैं,
एक ही तरह के भावों को
दिल के अंदर उपजातीं हैं,
एक ही तरह से आह उठा, आँसू बरसा,
हल्का हो जाया करता मन।
ठहरा सा लगता है जीवन।
एक ही तरह की तान कान
के अंदर गूँजा करती है,
एक ही तरह की पंक्ति पृष्ठ
के ऊपर नित्य उतरती है,
एक ही तरह के गीत बना, सूने में गा,
हल्का हो जाया करता मन।
ठहरा-सा लगता है जीवन।
हरीवंश राय बच्चन 

dev tumhare kai upasak

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी
धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो
मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो
subhadra kumari chouhan

बुधवार, 8 जुलाई 2015

स्वागतम

संभावना में आप सबका स्वागत है। आप सबके स्नेह व उत्साह मेरे जीवन में संजीवनी से कम नही बल्कि ज्यादा है । आप सबने जो प्यार फेसबुक पर संभावना को दिया आशा करती हूं इसे भी अपनी निर्मल छाया के अधीन रखेंगे। आप सभी बंधुजनो को ह्रदय से नमन।