शनिवार, 11 जुलाई 2015

समय

बस समय का फेर है 
उसे आने दे ऐ बदनसीब 
ये तुझे बताएगा जरूर 
मेरी बादशाही क्या है
और तेरी नवाबी क्या है 
यूँ तो तुमने लगाये
कुंवे के हजार चक्कर
पर निकलते बहार तो
दीखता न असलियत का मंजर
हंसती हूँ तेरी वजूद पे मैं हरदम
की नसीब में जिसके जूठन लिखा हो
वो खाए कैसे राजभोग व शक्कर

पदमा  सहाय 

3 टिप्‍पणियां:

  1. असत्य को महत्व दे रहे है जो
    सत्य को कैसे बर्दाश्त कर पायेगें
    फिर भी बेधडक हो बिंदास लिखो आज
    सहज हो सत्य का ही उजास लिखो
    यकीन है हमें असत्य पर सत्य
    विजयी ही होगा भले थोड़ी देर से सही ....

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  2. उत्साह वर्धन का शुक्रिया मधुर जी

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  3. उत्साह वर्धन का शुक्रिया मधुर जी

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